Shodashi Secrets
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क्षीरोदन्वत्सुकन्या करिवरविनुता नित्यपुष्टाक्ष गेहा ।
नवयौवनशोभाढ्यां वन्दे त्रिपुरसुन्दरीम् ॥९॥
A novel attribute in the temple is souls from any religion can and do offer you puja to Sri Maa. Uniquely, the temple management comprises a board of devotees from a variety of religions and cultures.
साम्राज्ञी चक्रराज्ञी प्रदिशतु कुशलं मह्यमोङ्काररूपा ॥१५॥
The practice of Shodashi Sadhana is usually a journey to equally enjoyment and moksha, reflecting the twin character of her blessings.
नौमीकाराक्षरोद्धारां सारात्सारां परात्पराम् ।
यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है। इसके बारे में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त करता है, पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।
Over the sixteen petals lotus, Sodhashi, who is the form of mother is sitting with folded legs (Padmasana) eliminates every one of the sins. And fulfils all of the needs together with her sixteen different types of arts.
The Devi Mahatmyam, a sacred text, details her valiant fights in a very number of mythological narratives. These battles are allegorical, representing the spiritual ascent from ignorance to enlightenment, Together with the Goddess serving since the embodiment of supreme knowledge and electrical power.
षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram
The name “Tripura” suggests the a few worlds, and the word “Sundari” signifies quite possibly the most stunning woman. The name in the Goddess only indicates one of the most lovely Woman inside the three worlds.
get more info श्रीगुहान्वयसौवर्णदीपिका दिशतु श्रियम् ॥१७॥
वन्दे वाग्देवतां ध्यात्वा देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥१॥
स्थेमानं प्रापयन्ती निजगुणविभवैः सर्वथा व्याप्य विश्वम् ।